ओशो की जीवनी | Osho biography in hindi

इस लेख में osho की biography बताई गयी है जिसे पढ़कर आपको osho के जीवन के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान मिल जायेगा।

ओशो का जन्म कब और और कहा हुआ था, ओशो के माता पिता कौन थे, ओशो का पूरा नाम क्या था, ओशो की मृत्यु कब और कैसे हुई, ओशो को आत्मज्ञान कब और कैसे प्राप्त हुआ

ओशो महान स्प्रिचुअल गुरु थे जिनका पूरा नाम ओशो रजनीश है, ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 में मध्यप्रदेश के एक छोटे से गाव कुचवाडा में हुआ था।


इनके पिता का नाम श्री बाबूलाल जैन तथा माता का नाम श्री मति सरस्वती बाई जैन था और ओशो अपने माता पिता की पहली संतान थे।


वो ग्यारह बच्चो में सबसे बड़े थे, बच्चपन से ही ओशो स्वतंत्र विचार के व्यक्ति थे जो हमेशा सामाजिक, धार्मिक और दर्शन शास्त्र के मुद्दों पर प्रश्न पूछते थे।


बचपन से लेके लगभग 7 वर्ष की आयु तक वो अपने नाना नानी पन्ना लाल जैन तथा श्री मति गेंदा बाई के पास रहे।


ओशो स्वं कहते है की उनके नानी ने उनको स्वतंत्रता दी तथा उन्हें रुढ़िवादी शिक्षाओ से दूर रखा यही उनके विकाश में प्रमुख योगदान रहा।


ओशो जब पैदा हुए तो ज्योतिषी ने उनके पिता से कहा यदि यह बालक 7 वर्ष से अधिक जीवित रहा तब मै इसकी कुंडली बनाऊंगा।


क्युकी ओशो का 7 वर्ष से ज्यादा जीने का योग नहीं था और ज्योतिषी ने इनके पिता से यह भी कहा की प्रतेक 7 वर्षो में 21 वर्ष तक इनको मृत्यु का सामना करना पड़ेगा।


जब ओशो 14 वर्ष के हुए तो वो एक मंदिर में जाकर अपने मृत्यु का इन्तेजार करने लगे लेकिन उनके साथ कुछ भी ऐसा नहीं हुआ।


1953 में जब ओशो 21 वर्ष के हुए तो उन्हें मोलश्री वृक्ष के निचे ऐसी अनुभूति हुई जिससे उनका पूरा जीवन बदल गया दरअसल ओशो को उस पेड़ के निचे आत्मज्ञान मिल चूका था।


ओशो पढाई में बहोत होशियार थे और वो goldmedlist भी रह चुके थे, उन्होंने सागर विश्व विद्यालय से दर्शन शास्त्र में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया।


उसके बाद वे रामपुर संस्कृत collage जबल पुर विश्व विद्यालय में दर्शन शास्त्र पढ़ाने लगे इसी दौरान उन्होंने पुरे देश का भ्रमण किया।


1962 में उन्होंने अपना पहला ध्यान सिविल आयोजित किया दो वर्ष बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ध्यान के मार्ग पे चल दिए।


ओशो ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इशाई, सूफी, जैन जैसे कई धर्मो पर प्रवचन दिए वो अक्सर इशु, मीरा, नानक, कबीर, गौतम बुद्ध और रविन्द्र नाथ टैगोर जैसे महापुरुष के रहस्यों के बारे में प्रवचन देते थे।


इसी के साथ जून 1964 में रनकपुर शिविर में पहली बार ओशो के प्रवचनों को रिकॉर्ड किया गया और इसपर एक किताब भी छापी गयी जिसका नाम path of self realization है।


यह किताब काफी प्रसिद्ध भी हुई, ओशो ने अपने क्रांतिकारी विचारो से दुनिया भर के वैज्ञानिको, बुद्धिजीवो और साहित्यकारों को प्रभावित किया।


1969 में ओशो के फोल्लोवेर्स ने उनके नाम पर एक फाउंडेशन भी बनवया जिसका मुख्यालय पहले मुंबई में था बाद में फिर उसे पूना सिफ्ट कर दिया गया।


और वो स्थान ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसोर्ट के नाम से जाना जाता है, 1970 में ओशो ने अपने क्रन्तिकारी ध्यान शक्तियों को उजागर किया।


जिससे उनके जीवन में एक नयी शुरुआत हुई क्युकी उनके द्वारा बताई गयी ध्यान की विधि का उपयोग कई मेडिकल डॉक्टर्स, शिक्षक और दुनिया के बड़े-बड़े लोग इस्तेमाल करने लगे।


जहाँ एक तरफ कई लोग ओशो को फॉलो कर रहे थे वही दूसरी तरफ कई लोग उनके खिलाफ भी थे।


जिसके चलते सन 1970 में उन्हें सेक्स गुरु का नाम दिया गया और इसका कारन ये था की ओशो सेक्स जैसे सेंसटिव टॉपिक पर खुल कर विचार रखते थे।


ओशो ने अपने क्रन्तिकारी विचारो लाखो शिष्य बनाये और धीरे-धीरे वो अमेरिका तक फेमस हो गए।


योरोप तथा भारत के लोग महान मनोवैज्ञानिक कहते थे, कुशल प्रवक्ता होने के कारण ओशो के प्रवचनों के करीब 600 पुस्तके छप चुकी थी।


और इन्ही पुस्तको में सबसे फेमस और सबसे विवादित पुस्तक है सम्भोग से समाधि की ओर, अमेरिका के लोग उन्हें इतना मानते थे की वो उन्हें भगवान् रजनीश कहने लगे जिससे ओशो की काफी आलोचना भी हुई।


वो दार्शनिक होते हुए खुद को भगवान् कहलवाते है जिसकी सफाई में ओशो ने कहा भगवन का अर्थ ईश्वर से नहीं है बल्कि उस प्रत्येक व्यक्ति से है जो अध्यात्म से होकर परम आनंद तक पहोच चूका है।


1974 से 1981 तक ओशो रोज़ सुबह 90 मिनट का प्रवचन देते थे जो हिंदी और english दोनों भाषाओ में होते थे।


ओशो के प्रवचन में काफी रहस्यमई ज्ञान होता था जैसे - तंत्र, हिप्नोटिजम और सूफी विद्या, ओशो व्यक्ति का आंतरिक विकास करते थे।


ओशो की ध्यान थेरेपी काफी मशहूर थी और लोग इनके ध्यान थेरेपी से काफी प्रभावित हुए और इसका लाभ लेने लगे इसी के साथ ओशो ने 1981 में अपने शिष्यों के साथ मिलकर अमेरिका में रजनी पुरम की स्थापना की और अमेरिका में भाध्ती लोकप्रियता और वहा के लोगो को उनके लिए प्यार देखकर अमेरिका सरकार ने उनके आश्रमों को गैर क़ानूनी काम करने का केंद्र बताया।


ओशो को इसके लिए गिरफ्तार भी किया गया बाद में उन्हें छोड़ दिया गया और इसके लिए उन्हें 4 लाख डालर का जुर्माना देना पड़ा इसी के साथ ओशो की बातो में सच्चाई और तर्क होती थी जिसके चलते अमेरिका के लोग क्रिस्चयानिटी को छोड़कर ओशो को फॉलो करने लगे।


इसी के कारण अमेरिका सहित दुसरे देशो के लोग भी ओशो के खिलाफ हो गए लेकिन इससे ओशो की प्रशिद्धि में कोई फर्क नहीं पड़ा और वो अपनी तमाम उम्र लोगो को मार्गदर्शन करते रहे।


अपना पूरा जीवन लोगो को देने के बाद 19 जनवरी 1990 को ओशो ने 58 वर्ष की उम्र में अपना शारीर त्याग दिया ओशो की मृत्यु को लेकर काफी विवाद भी हुआ जिसमे अमेरिका सरकार द्वरा उन्हें उस वक्त स्लो पोइजन देने का आरोप भी लगा जब वो अमेरिका के जेल में थे।


ओशो के बारे में ये कहना गलत नही होगा की ओशो जैसी चेतना का जन्म सैकड़ो वर्ष के बाद होता है बुद्ध के बाद ओशो ही एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने अपने अध्यात्म चेतना के सिखर को छू लिया था।


ओशो में वो ओशो पन था जो उन्हें दुनिया के तमाम पुरषों से अलग करता है, ओशो का नाम विलियम जेम्स के शब्द ओशनिक से लिया गया था जिसका अर्थ होता है - सागर में मिल जाना।




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